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नेता और चुनाव

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      नेता और चुनाव ****************************** जब चुनाव समीप होते हैं, तब नेता कम सोते हैं। क्योंकि वे करते हैं प्रचार, ताकि बन सके उनकी सरकार। वे गांवो-गलियों और घरों के अंदर, विनम्र भाव से हाथ जोड़कर। सबको शीश झुकाते हैं, भइया वोट हमी को देना, बार-बार दोहराते हैं। लोगों को लुभाते हैं, और सबको यह बतलाते हैं। अगर दोगे हमें वोट, बटवा दूंगा जाड़े में कोट। सड़कें पक्की बनवा दूंगा, बल्ब खंभों में लगवा दूंगा। लगवा दूंगा गली-गली में नल, जिनसे निकलेगा शुद्ध जल। इसी तरह वे ढेरों वादे करते हैं, और हर व्यक्ति के पैर पड़ते हैं। भोली जनता बहकावे में आ जाती है, और वोट उसी को दे आती है। जब रिजल्ट घोषित होता है, जो नेता जी के पक्ष में होता है। रिजल्ट सुनकर नेताजी खुश हो जाते हैं, उनके चमचे उन्हें पुष्प हार पहनाते हैं। नेताजी जो-जो वादें कर गए थे, जीतने की खुशी में सारे गुम कर गए थे। जब नेताजी कई महीनों तक गांव में नहीं आते हैं, तो लोगों के नेत्र खुल जाते हैं। वे मन ही मन पछताते हैं, अगली बार वोट नहीं देंगे, के प्रण दोहराते हैं। ***********************************    

तर्पण

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    जब तक थे वो जिंदा, दाने-दाने को मोहताज किया।   आज बुलाकर ब्राह्मण को,   तुमने उनका श्राद्ध किया।   काक को भोजन अर्पण है,     यह कैसा तेरा तर्पण है? -×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-      मनोज कुमार 'अनमोल'