तर्पण

    जब तक थे वो जिंदा,

दाने-दाने को मोहताज किया। 

 आज बुलाकर ब्राह्मण को,

  तुमने उनका श्राद्ध किया। 

 काक को भोजन अर्पण है, 

   यह कैसा तेरा तर्पण है?

-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-

     मनोज कुमार 'अनमोल'


Comments

Popular posts from this blog

अकेले हम, अकेले तुम

हिन्दी पहेलियाँ

सरस्वती वंदना