निराशा

            निराशा
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तितली सी खूबसूरत चंचल,
     कोमल अंगों वाली। 
   मेरी सूनी बगिया में तू, 
   क्या रंग बिखेरने आई? 
  मैं प्रसून मुरझाया हुआ, 
उष्ण पवन का मारा हुआ। 
छिन्न पत्र मकरंद लुटा सा, 
शिथिल शरीर फटा वसन सा।
   करुण वेदना मेरे मन में, 
 अब अंधकार है जीवन में। 
  अब मुखरित संगीत नहीं, 
   राग नहीं, अब रंग नहीं। 
   मन में कोई हौस नहीं, 
सतत जिजीविषा रही नहीं। 
मेरे जीवन में अब मत आना,  
ना खुशियों के फूल खिलाना।
  भंवरों के संग भंवरे लेना, 
 उनके साथ बसेरा करना।
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 मनोज कुमार 'अनमोल' 
    रतापुर, रायबरेली 
      (उत्तर प्रदेश)

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