धरती की पुकार

धरती की पुकार
----------------------------------------
सूखी धरती करे करुण पुकार, 
कर दो मुझ पर ये उपकार।
वृक्ष धरा के हैं आधार,
ये सब हैं मेरे श्रृंगार ।
तरुओं पर ना करो प्रहार,
ये देते फल, लकड़ी और बयार।
फिर भी तुम इन पर करते हो वार,
क्या यही तुम्हारे हैं संस्कार?
हे मनुष्य हो जाओ उदार,
बदलो तुम अपने आचार-विचार।
बचा लो मेरा होने से संहार,
वृक्ष लगाओ प्रतिदिन हजार।
जिससे मिले मुझे खुशियाँ अपार,
हरा भरा हो जाए मेरा घर संसार।
----------------------------------------
मनोज कुमार अनमोल 
रतापुर, रायबरेली 
उत्तर प्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

अकेले हम, अकेले तुम

हिन्दी पहेलियाँ

सरस्वती वंदना