नदियाँ

नदियाँ 
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हिमगिरि से बनती है नदियाँ,
चम-चम करती आती।
निर्मल उज्ज्वल धारा बनकर,
कल-कल बहती जाती।
धरती के श्यामल अंचल पर,
ये अपना प्यार लुटाती।
सूखे खेतों में फसलें बनकर,
जो फिर हैं लहराती।
जन-जीवन है प्यास बुझाता,
मीन तैरती जाती।
सुमनों में फिर खुशबू बनकर,
सुगंध समीर बहाती।
आर्थिक दृष्टि से नदियाँ सबको,
है संपन्न बनाती।
इसीलिए ये माता कहकर,
जग में पूजी जाती।
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मनोज कुमार अनमोल  
रतापुर, रायबरेली 
उत्तर प्रदेश

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