उठो कवि

उठो कवि
---------------------------------------------------
अपराह्न का वक्त था, 
आसमान स्वच्छ था।
मैं छत पर खड़ा था,
फर्श पर पर कागज पेन पड़ा था।
मन में कवि सम्मेलन का ख्याल था, 
अच्छी कविता लिखने का अरमान था। 
श्रेष्ठ ऊँचे शब्द चाहता था, 
पर कुछ याद नहीं आता था। 
मैंने सोचा लोग कैसे बनते हैं कवि? 
और कविता में उतारते हैं प्रकति की छवि। 
यह सोचते-सोचते मैं गहरी निंद्रा में सो गया, 
हवा के तीव्र झोंकों से कागज पेन उड़ गया। 
जब मैं जागा तो निकल चुका था रवि, 
मम्मी ने मुझे जगाते हुए कहा उठो कवि।
----------------------------------------------------
मनोज कुमार अनमोल  
रतापुर, रायबरेली 
उत्तर प्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

अकेले हम, अकेले तुम

हिन्दी पहेलियाँ

सरस्वती वंदना