ज़िंदगी कैसे रही है गुज़र?
ज़िंदगी कैसे रही है गुज़र?
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ज़िंदगी कैसे रही है गुज़र?
हाल किसको सुनाऊँ मैं दिल खोलकर?
कट रही है उम्र रो-रो कर,
ज़ख्म जाते हैं फिर से उभर।
विधाता ने ढाया ये कैसा कहर?
कोई आकर पिला दे मुझे ज़हर।
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मनोज कुमार अनमोल
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