ज़िंदगी कैसे रही है गुज़र?

ज़िंदगी कैसे रही है गुज़र?
------------------------------------------------
ज़िंदगी कैसे रही है गुज़र?
हाल किसको सुनाऊँ मैं दिल खोलकर?
कट रही है उम्र रो-रो कर,
ज़ख्म जाते हैं फिर से उभर।
विधाता ने ढाया ये कैसा कहर?
कोई आकर पिला दे मुझे ज़हर।
------------------------------------------------
मनोज कुमार अनमोल 



Comments

Popular posts from this blog

अकेले हम, अकेले तुम

हिन्दी पहेलियाँ

सरस्वती वंदना