हुस्न का क़हर

हुस्न का क़हर
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क्यूँ बनकर समंदर की लहर,
ढाती हो अपने हुस्न का क़हर।
लोग खाकर ना मर जाए ज़हर, 
ऐ हुस्न की परी अब तू जा ठहर।
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मनोज कुमार अनमोल 

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