जल रही है विरह की आग
जल रही है विरह की आग ------------------------------------------ जल रही है विरह की आग, खोजती हूँ मैं लेकर चिराग। तुम छाए थे मेरे दिलो-दिमाग, माना था तुझे अपना सुहाग। करती थी मैं तुमसे अनुराग, फिर क्यों किया तूने मेरा परित्याग? ------------------------------------------ मनोज कुमार अनमोल