महंगाई की मार
महंगाई की मार
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महंगाई की मार से, जनता है बेहाल।
सुरसा के मुख जैसी, ये फैल रही विकराल।
जेबे खाली हो गई, लोग हुए कंगाल।
जमा खोर कर रहे, जनता को हलाल।
भोजन की थाली से, गायब हो गई दाल।
कुपोषण से बच्चों के, पिचक गए हैं गाल।
दवा हो गई महंगी, रोग हुए हैं काल।
रुपए के मुकाबले, डालर में उछाल।
समाधान नहीं हो रहा, बीत रहे हैं साल।
आम आदमी मर रहा, दया करो गोपाल।
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मनोज कुमार अनमोल
रतापुर, रायबरेली
(उत्तर प्रदेश)
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