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मैं राह देखती खड़ी द्वार
मैं राह देखती खड़ी द्वार, प्रियतम आ जाओ एक बार..... सुन लो दिल की करुण पुकार, कब होगा तेरा दीदार। कब होंगी फिर आंखें चार, जरा बताना मुझको यार। मैं राह देखती खड़ी द्वार, प्रियतम आ जाओ एक बार..... अंखियां दुखती पंथ निहार, अश्रु निकलते बारम्बार। निशिि-वासर मैं करूं इंतजार, तन्हाई डालेगी मार। मैं राह देखती खड़ी द्वार, प्रियतम आ जाओ एक बार..... तुम बिन फीके सब त्योहार, रूखा लगता है आहार। तुम्हें बुलाए मेरा प्यार, पहना दे बांहों का हार। मैं राह देखती खड़ी द्वार, प्रियतम आ जाओ एक बार..... ****** मनोज कुमार 'अनमोल' रतापुर, रायबरेली उत्तर प्रदेश
गुब्बारे
गुब्बारे ------------------------------- गुब्बारों का लेकर गुच्छा, देखो आए रामू चच्चा। गैस भरे हैं ये गुब्बारे, बच्चों को लगते हैं प्यारे। लाल, हरा, पीला, नीला, कोई दिखता है चमकीला। पांच रुपए लेकर आओ, मन चाहे जो लेकर जाओ। डोर बांध कर इन्हें उड़ाओ, आसमान की सैर कराओ। ----------------------------------- मनोज कुमार अनमोल रतापुर, रायबरेली उत्तर प्रदेश
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