जल रही है विरह की आग
जल रही है विरह की आग
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जल रही है विरह की आग,
खोजती हूँ मैं लेकर चिराग।
तुम छाए थे मेरे दिलो-दिमाग,
माना था तुझे अपना सुहाग।
करती थी मैं तुमसे अनुराग,
फिर क्यों किया तूने मेरा परित्याग?
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मनोज कुमार अनमोल
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