गुज़र रही है उमर

गुज़र रही है उमर 
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गुज़र रही है उमर,
झुक रही है कमर।
कमजोर हो रही नज़र,
सूख रहें हैं अधर।
कम्पित हैं मुख के स्वर,
बुद्धि भी अब ना रही प्रखर।
हाय बुढ़ापे का ये असर,
कट रहा ज़िन्दगी का ये सफ़र।
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मनोज कुमार अनमोल 

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